खून की निशानी
मल्लिका सेनगुप्ता
अनुवाद: रेशमी सेन शर्मा
मैंने तो कभी तुमपर हाथ नहीं उठाया,
पहली बार,
जिसदिन तुमने मेरे सीने को चीरकर
खून की निशानियाँ भेंट की थी मुझे,
उसदिन दर्द तो हुआ था ,पर तुमसे कुछ नहीं कहा
शुष्क जमीन पर
न गुलाब खिलता है और न नाचता है मोर l
फिर भी हमेशा से ही हम
बालूचर को खोदकर जल सींचते आए हैं
लड़के को गोद में लिए हुए,
जुगनुओं को देखा है
कालपुरुष पहचानना सिखाया है l
हम तो जानते हैं
धरा स्त्री और आकाश आदिम पुरुष है l
तो फिर क्यों तुमने मेरे दोनों हाथों में जंजीरें दाल दी है ?
हज़ारों वर्षों से क्यों तुमने
मुझे सूर्य देखने नहीं दिया ?
जिस मिटटी पर तुम खड़े हो उसका अपमान न करो
हे पुरुष !
मैंने तो कभी तुमपर हाथ नहीं उठाया l